स्वयं को श्रेष्ठ न समझकर दूसरों में श्रेष्ठता देखनी चाहिए,ऐसा निरंकार परमात्मा से जुडने पर ही संभव है:-महात्मा संजय गुलेरिया

स्वयं को श्रेष्ठ न समझकर दूसरों में श्रेष्ठता देखनी चाहिए,ऐसा निरंकार परमात्मा से जुडने पर ही संभव है:-महात्मा संजय गुलेरिया

डलहौजी /चम्बा 2 फरवरी मुकेश कुमार( गोल्डी)

रविवार को स्थानीय निरंकारी सत्संग भवन बनीखेत में सत्संग का आयोजन किया गया जिसमें प्रवचन करते हुए महात्मा संजय गुलेरिया ने फरमाया कि परमात्मा को जाना जा सकता है। इसका अस्तित्व हर और है यह सर्वत्र व्यापत है और हम सभी इसी का अंश है परमात्मा से इकमिक होने पर जीवन का हर एक पल आनांदित हो जाता है निश्चित रूप से मुक्ति मार्ग मिल जाता है आध्यात्मिकता से युक्त जीवन ही हमें पूर्ण मनुष्य बनाता है और पूर्ण अवस्था आने के उपरांत प्रेमा भक्ति का आरंभ हो जाता है।महात्मा ने मानवीय मूल्य का जिक्र करते हुए कहा कि मनुष्य जन्म लेने से मनुष्यता नहीं आती बल्कि व्यवहार आचरण और स्वभाव में मानवीय गुना का होना अनिवार्य है परिवार समाज ,राज्य ,देश और संसार में सभी और प्रेम के भाग को फैलाना ही मानवता है।संजय गुलेरिया ने कहा कि जैसे पानी पर्वत पर बर्फ रुप में होता है और पिघलकर झरना बन जाता है।फिर नदी रूप में समुद्र में मिल जाता है ।वह अपने स्वभाव के अनुरूप ही व्यवहार करता है पानी का स्वभाव तो केवल ढलान की और बहना ही होता है ठीक इसी प्रकार से मन में अहंकार  के स्थान पर नम्रता का भाव होना चाहिए । स्वयं को श्रेष्ठ न समझकर दूसरों में श्रेष्ठता देखनी चाहिएऐसी स्थिति निरंकार परमात्मा से जुडने पर ही संभव है।गुलेरिया ने आगे फरमाया कि ब्रह्मज्ञानी संत महात्माओं के संग द्वारा संतमति को धारण कर जीवन को सरल एवं सहज बनाया जा सकता है।मानवीय गुणों को जीवन में अपना कर अपनी गलतियों में सुधार करें और छल कपट वाला जीवन नहीं अपितु एक दूसरे के लिए समर्पित भाव वाला जीवन  जिएं।

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