“परमात्मा को जानना ही नहीं, परमात्मा को मानना भी अत्यंत जरूरी” महात्मा दीप जसवाल
डलहौजी/ चंबा 10 नम्बर मुकेश कुमार (गोल्डी)
सन्त निरंकारी सत्संग भवन बनीखेत में साप्ताहिक सत्संग में आज रविवार को महात्मा दीप जसवाल ने मिशन का संदेश देकर प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए उन्होंने फरमाया कि परमात्मा को जानना ही नहीं, परमात्मा को मानना भी बहुत जरूरी है। परमात्मा की मानने में तभी आनंद आता है जब हम परमात्मा को जान लेते हैं इसीलिए कहा गया है कि पहले जानो फिर मानो।
दीप जसवाल जी ने कहा कि परमात्मा कण-कण में व्याप्त है। इसका बोध पूर्ण गुरू द्वारा ही संभव है। मगर परमात्मा के बोध का सही आनंद तभी आता है जब हम सद्गुरू के बताए रास्ते पर चल पाएं। उन्होंने कहा कि सद्गुरू का यहीं संदेश है कि गृहस्थ जीवन में रह कर ही इंसानियत की सेवा करें। दूसरों के दुख बांटे वहीं दूसरों की खुशी में भी सहभागी बने। ईश्वर को वह लोग प्रिय हैं जो इंसानियत से प्यार करते हैं। परोपकारी जीवन जीते हैं और जहां भी मौके मिले दूसरों का हमदर्द बनने के प्रयास में रहते हैं। महात्मा ने कहा कि सद्गुरू से परमात्मा को बोध करके हम ब्रह्मïज्ञानी अर्थात निरंकारी तो कहलाते हैं मगर वास्तविक निरंकारी हम तभी कहलाऐंगे जब सद्गुरू के उपदेशों का अनुसरण करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि धर्म-मजहब के बंधन में विश्व एक दूसरे की जान का प्यासा बना हुआ है। अगर यह ज्ञान हो जाए कि राम, रहीम और मौला एक ही है तो फिर दंगे-फसाद की कोई वजह नहीं रह जाती है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य योनि अति दुर्लभ है और इसी दुर्लभ योनि में परमात्मा का बोध हो सकता है। अगर मनुष्य योनि में आकर भी हमने कण-कण में व्याप्त इस निराकार सत्ता अर्थात परमात्मा को बोध नहीं किया तो यह मान लेना चाहिए कि मनुष्य योनि का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है।इस अवसर दूर दराज गांवो से टप्पर, चौहडा सिमणी, गोली ,बाथरी ,चिडिद्रवड इत्यादि गांवो से श्रदालुओं ने कण कण में विराजमान परमात्मा का भजन प्रवचन कविता के माध्यम से गुणगान किया।