ब्रह्म ज्ञान सतगुरु की कृपा से प्राप्त होता है किंतु विश्वास महापुरुषों की संगत में आने से ही दृढ़ होता है :- महात्मा रतन चंद

ब्रह्म ज्ञान सतगुरु की कृपा से प्राप्त होता है किंतु विश्वास महापुरुषों की संगत में आने से ही दृढ़ होता है :- महात्मा रतन चंद

डलहौजी/ चंबा 1 सितंबर मुकेश कुमार( गोल्डी)

आज स्थानीय निरंकारी सत्संग भवन बनीखेत में साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया जिसमें प्रवचन करते हुए महात्मा रत्तन चंद  ने फरमाया कि ब्रह्म ज्ञान सतगुरु की कृपा से प्राप्त होता है लेकिन उस पर विश्वास महापुरुषों की संगत में आने से ही दृढ़ होता है।जैसे-जैसे हम सत्संग करते हैं वैसे वैसे हमारा मन स्थिर होता जाता है शान्त होता चला जाता है मन को शक्ति मिलती है क्योंकि उसको  पता लग जाता है कि सर्व शक्तिमान परमात्मा, जो निराकार है अंग संग  है ।

सत्संग में आने से ही उसे विश्वास होता है कि सब सुखों को देने वाला निरंकार प्रभु ही है । उन्होंने कहा कि मनुष्य योनि अति दुर्लभ है और इसी दुर्लभ योनि में परमात्मा का बोध हो सकता है। अगर मनुष्य योनि में आकर भी हमने कण-कण में व्याप्त इस निराकार सत्ता अर्थात परमात्मा का बोध नहीं किया तो यह मान लेना चाहिए कि मनुष्य योनि का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है। महात्मा ने कहा कि निरंकारी मिशन के उपदेशों का अनुसरण ही मिशन की शिक्षा है।

हमारा व्यवहार सौहार्दपूर्ण और मेल-मिलाप वाला होना चाहिए। व्यवहार से निरंकारी होना चाहिए न कि हम बोल कर बताएं कि हम निरंकारी हैं। रतन चंद जी फरमाया कि सत्संग सेजीवन में प्रेम,  मेलजोल, भाईचारे की भावना का संचार होता है और मनुष्य में व्यापत सभी प्रकार के नकारात्मक भाव जैसे वैर, नफरत ,ईर्ष्या, लोभ लालच इत्यादि दूर हो जाते हैं

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