जिला चंबा का सुप्रसिद्ध व ऐतिहासिक सुही मेला 11 से 13 अप्रैल तक मनाया जाएगा

जिला चंबा का सुप्रसिद्ध व ऐतिहासिक सुही मेला 11 से 13 अप्रैल तक मनाया जाएगा

चंबा 20 मार्च मुकेश कुमार (गोल्डी)

चंबा का ऐतिहासिक सुही मेला 11 से 13 अप्रैल तक।रानी के बलिदान से संबंधित मेले में केवल महिलाएं और बच्चे ही लेते हैं हिस्सा।जिला चंबा का सुप्रसिद्ध व ऐतिहासिक सुही मेला 11 से 13 अप्रैल तक मनाया जा रहा है तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में केवल महिलाएं और बच्चे ही सम्मिलित होते हैं। मेले के प्रथम दिन चंबा स्थित पिंक पैलेस से सुही माता मंदिर तक एक भव्य एवं ऐतिहासिक यात्रा निकाली जाती है जबकि दूसरे दिन सुही माता मंदिर से मलूणा (रानी सुनयना का समाधि स्थल) यात्रा का आयोजन किया जाता है मेले के तीसरे दिन यात्रा का पड़ाव मंदिर स्थल होता है मेला आयोजन के तीनों दिन स्थानीय वासियों द्वारा लंगर का आयोजन किया जाता है इसके अलावा गद्दी समुदाय की महिलाओं द्वारा गुरई नृत्य प्रस्तुत किया जाता है तथा जिसमें रानी सुनयना के बलिदान व इससे जुड़े इतिहास की झलक देखने को मिलती है।

लोककथा के अनुसार छठी शताब्दी में चंबा की रानी सुनयना प्रजा की प्यास बुझाने की खातिर जिंदा जमीन में दफन हो गई थीं। ऐसा कहा जाता है कि चंबा नगर की स्थापना के समय नगर में पानी की गंभीर समस्या थी। इस समस्या को दूर करने के लिए चंबा के राजा ने नगर से करीब दो मील दूर सरोथा नामक नाला से नगर तक कूहल द्वारा पानी लाने का आदेश दिया। राजा के आदेशों पर कूहल का निर्माण कार्य किया गया मगर कर्मचारियों के प्रयासों के बावजूद इसमें पानी नहीं आया। कथा के अनुसार एक रात राजा को सपने में आकाशवाणी सुनाई दी जिसमें कहा गया कि कूहल में पानी तभी आएगा जब पानी के मूल स्त्रोत पर रानी अथवा एक पुत्र को जीवित जमीन में दफना दिया जाए। राजा इस स्वप्न को लेकर काफी परेशान रहने लगा। इस बीच रानी सुनयना ने राजा से परेशानी का कारण पूछा तो उसने स्वप्न की सारी बात बता दी। लिहाजा रानी ने खुशी से प्रजा की खातिर अपना बलिदान देने का निर्णय सुनाया। हालांकि राजा और प्रजा नहीं चाहती थी कि रानी पानी की खातिर अपना बलिदान दें, लेकिन रानी ने अपना हठ नहीं छोड़ा और लोकहित में जिंदा दफन होने के लिए सबको राजी कर लिया।

कहा जाता है कि जिस वक्त रानी पानी के मूल स्त्रोत तक गई तो उसके साथ अनेक दासियां, राजा, पुत्र और हजारों की संख्या में लोग भी पहुंचे। बलोटा गांव से लाई जा रही कूहल पर एक बड़ी क्रब तैयार की गई और रानी साज-श्रृंगार के साथ जब उस क्रब में प्रवेश कर गई तो पूरी घाटी आंसुओं से सराबोर हो गई। कहा जाता है कि क्रब में ज्यों ज्यों मिट्टी भरने लगी, कूहल में भी पानी चढ़ने लग पड़ा। चंबा शहर के लिए आज भी इसी कूहल में पानी बहता है, लेकिन वक्त के बदलते दौर के साथ शहर में अब नलों के जरिए इस कूहल का पानी पहुंचाया जाता है। इस तरह चंबा नगर में पानी आ गया और राजा साहिल बर्मन ने रानी की स्मृति में नगर के ऊपर बहती कूहल के किनारे रानी की समाधि बना दी।

इस समाधि पर रानी की स्मृति में एक पत्थर की प्रतिमा विराजमान है, जिसे आज भी चंबा के लोग विशेषकर औरतें अत्यन्त श्रद्धा से पूजती हैं। प्रति वर्ष रानी की याद में 15 चैत्र से पहली बैशाखी तक मेले का आयोजन किया जाता है जो कि सुही मेला के नाम से प्रसिद्ध है। मेले का नाम रानी सुनयना देवी के पहले अक्षर से रखा गया प्रतीत होता है। इस मेले में केवल स्त्रियां और बच्चे ही जाते हैं। महिलाएं रानी की प्रशंसा में लोकगीत गाती हैं तथा समाधि व प्रतिमा पर फूलों की वर्षा की जाती है।

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