भक्ति भाव से भटकने पर प्रभु ही एक मात्र है जो हमें संभालता है :- महात्मा रतन चंद

भक्ति भाव से भटकने पर प्रभु ही एक मात्र है जो हमें संभालता है :- महात्मा रतन चंद

डलहौजी/ चंबा 3 मार्च मुकेश कुमार (गोल्डी)

 बीते कल रविवार को स्थानीय निरंकारी सत्संग भवन बनीखेत में साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया जिसमें प्रवचन करते हुए महात्मा रतन चंद ने फरमाया कि जब हम भक्ति भाव से कभी भटकते भी हैं तो ये परमात्मा हमें संभाल लेता है; बस ज़रूरत पूर्ण समर्पण की है। हम अपने अहंकार को खोकर इसके प्रति ऐसे हो जाएं जैसे एक पत्ता पानी पर तैरता है । चाहे नदी उछल रही है या शांत होकर बह रही है, वो पत्ता अनेक बाधाओं के बावजूद पानी के ऊपर तैरते हुए आगे की अपनी यात्रा पूरी करता है ।परमात्मा के सहारे रहें, जीवन भी सहज रहेगा : जीवन में हम जब परमात्मा का सहारा लेते हैं तो वाकई ही हमारा मन इतना हल्का हो जाता है कि हमारी पूरी जीवन यात्रा ही बहुत सहज हो जाती है।

महात्मा ने आगे कहा कि अहंकार को पीछे और प्यार को हमेशा आगे रखें: जब संसार में इतनी अलग-अलग मान्यताओं, भावनाओं वाले लोग हैं तो हर एक से प्यार कैसे किया जाए और अपने अहंकार को कैसे छोड़ा जाए  दूसरों को प्यार करते हुए उनको कैसे अपनाया जाए? बात वही कि जब हमें हर एक में यह परमात्मा दिखेगा तो वाकई ही हमें सभी श्रेष्ठ दिखेंगे, सभी प्यारे दिखेंगे।हर एक से कुछ सीखने का भाव रखें जब हर एक से कुछ न कुछ सीखने का भाव रहेगा तो हर एक से मिलकर यही लगेगा कि इनके जीवन जैसा, हमारा भी जीवन हो। इनके जीवन में जो मानवीय गुण हैं, वो हम भी अपनायें । परमात्मा को भुलाते ही भूल होने का भय : जब-जब भी हम इस परमात्मा को भुलाते हैं, तब-तब हमें गलत रास्ते पर जाने में देर नहीं लगती। ये निहरराकार हमसे भूला नहीं कि फिर हम नकारात्मकता अपने अंदर ले आते हैं, फिर चाहे वो छोटी-छोटी बातों का अहंकार वाला रूप ही क्यों न हो।भक्ति एक आध्यात्मिक सच्चाई है : भक्ति कोई काल्पनिक बात नहीं है, यह एक वास्तविक सच्चाई है । आध्यात्मिकता होती ही वास्तविक है। भक्ति अपने आपको संसार, समाज, घर-परिवार से अलग करके नहीं की जाती।

ये तो हर एक के बीच में रहकर, खुद के अंदर जो सुकून है, उसे महसूस करने की बात है। इस निरंकार परमात्मा का आसरा लेने से शांति का भाव इस मन में बहने लगता है परमात्मा तो हर समय हमारे अंग-संग है। बस इससे जो दूरी है वो यही कि अंग-संग होते हुए भी हम इसके अहसास में नहीं रहते। यह दूरी हमारी तरफ से ही है । इस दूरी को समाप्त करने के लिए सेवा, सुमिरण, सत्संग पर ध्यान केन्द्रित करके, निरंकार के अहसास में और भी ज्यादा गहराई से रहना है। परमात्मा की  भक्ति का भाव भी यही है कि पहले इस परमात्मा को जानकर, फिर अपने जीवन में लाकर, श्रद्धा – विश्वास से भक्ति की यात्रा शुरू करनी है।

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