हिमाचल प्रदेश सरकार पर मंडरा रहा आर्थिक संकट, केंद्र से लोन लिमिट की मंजूरी न मिली तो रुक सकती है मार्च की सैलरी

हिमाचल प्रदेश सरकार पर मंडरा रहा आर्थिक संकट, केंद्र से लोन लिमिट की मंजूरी न मिली तो रुक सकती है मार्च की सैलरी

शिमला 29 जनवरी चम्बा न्यूज़ एक्सप्रेस ( ब्यूरो)

हिमाचल प्रदेश कर्ज के मकड़जाल में बुरी तरह से उलझता प्रतीत हो रहा है। आखिरी तिमाही यानी जनवरी से लेकर मार्च तक की अवधि में राज्य सरकार के पास कर्मचारियों के वेतन, पेंशनर्स की पेंशन और अन्य रूटीन के कामकाज के लिए पैसे नहीं हैं. स्टेटहुड डे के अवसर पर कर्मचारियों को आस थी कि सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू कम से कम डीए की एक किस्त की अदायगी का ऐलान करेंगे. आस तो छठे वेतन आयोग के बकाया एरियर की भी थी, लेकिन सरकार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए इसकी अदायगी पर कर्मचारियों को खुद भी कम ही भरोसा था।सुक्खू सरकार ने केंद्र से लोन लिमिट बढ़ाने का आग्रह किया अब आलम ये है कि राज्य सरकार के पास कर्ज लेने के लिए सालाना लिमिट में से केवल 300 करोड़ रुपए ही बचे हैं. वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए जनवरी से दिसंबर 2023 तक हिमाचल सरकार की लोन लिमिट 6600 करोड़ रुपए थी. इस लिमिट में से राज्य सरकार जनवरी महीने तक 6300 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है.

अब सरकार के पास सिर्फ 300 करोड़ रुपए की ही लिमिट बची है. यानी सरकार अब केवल 300 करोड़ रुपए का कर्ज ही ले सकती है. इस गंभीर आर्थिक संकट से निपटने के लिए सरकार ने केंद्र सरकार से लोन लिमिट बढ़ाने का आग्रह किया है.सुक्खू सरकार की ₹7000 करोड़ की लोन लिमिट की चाहत: राज्य सरकार के मुख्य सचिव हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्रालय में खुद जाकर लोन लिमिट की औपचारिकताएं पूरी करके आए हैं. राज्य सरकार अंतिम तिमाही के लिए कम से कम 7000 करोड़ रुपए की लोन लिमिट चाहती है. तय प्रक्रिया के अनुसार राज्यों को केंद्र से अंतिम तिमाही के लिए लोन लिमिट अतिरिक्त मिलती है. अब सुखविंदर सिंह सरकार की सारी उम्मीदें केंद्र से अंतिम तिमाही की लोन लिमिट मंजूरी पर टिकी हैं. यदि सरकार को तय अवधि में लिमिट संबंधी मंजूरी नहीं मिली तो कर्मचारियों की मार्च महीने की सैलेरी पर संकट आ जाएगा. फरवरी के वेतन का जुगाड़ तो किसी तरह हो जाएगा, लेकिन मार्च महीने के लिए खजाना पूरी तरह से खाली हो जाएगा. ऐसे में राज्य सरकार पूरी सक्रियता से केंद्रीय वित्त मंत्रालय से संपर्क रखकर लिमिट बढ़ाने संबंधी औपचारिकताओं को जल्द पूरी करने के जुगाड़ में है.लोन लिमिट सेंक्शन से पहले केंद्र ने मांगा सारा हिसाब: हिमाचल सरकार ने केंद्र के समक्ष लोन लिमिट बढ़ाने के लिए आग्रह पत्र व औपचारिकताएं पूरी कर दस्तावेज जमा किए हैं. इस पर केंद्र ने राज्य सरकार ने अब तक ली गई उधारी का विवरण मांगा है. इसे सरकारी शब्दावली में बोरोइंग कैलेंडर सबमिशन यानी उधारी संबंधी कैलेंडर को जमा करना कहते हैं. इसका अर्थ है कि राज्य सरकार ने किस अवधि में कितना लोन लिया, उस लोन की ब्याज दर कितनी है, लोन को चुकाने की अवधि क्या है, एक वित्तीय वर्ष का टोटल लोन कितना है, अंतिम तिमाही के लिए कितना लोन चाहिए, आदि सवालों का ब्यौरा देना होता है. हिमाचल सरकार के वित्त विभाग ने ये ब्यौरा सौंप दिया है. अब सुखविंदर सिंह सरकार को लोन लिमिट बढ़ाने संबंधी केंद्र की मंजूरी का इंतजार है. राज्य सरकार अंतिम तिमाही में कम के कम 7000 करोड़ रुपए की लोन लिमिट चाहती है. यदि वर्ष 2023 की बात करें तो उस समय सुखविंदर सिंह सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 की अंतिम तिमाही यानी जनवरी 2023 से मार्च 2023 तक की अवधि में ही 6000 करोड़ रुपए लोन ले लिया था.

तब पूर्व की जयराम सरकार ने चूंकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में कम लोन लिया था, लिहाजा 6000 करोड़ रुपए बचे हुए थे.सुखविंदर सरकार ने लिया 14000 करोड़ का कर्ज: सत्ता में आने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार अब तक 14,000 करोड़ रुपए का लोन ले चुकी है. मौजूदा सरकार इस वित्तीय संकट का ठीकरा पूर्व की जयराम सरकार पर फोड़ रही है. खैर, सुखविंदर सरकार ने जनवरी महीने में एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया था. ये रकम 17 जनवरी को सरकार के खजाने में आई थी. इससे पहले नवंबर 2023 में सरकार ने 800 करोड़ रुपए, अक्टूबर 2023 में एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया था. राज्य सरकार को कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर हर महीने 1500 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने पड़ते हैं. हिमाचल सरकार के बजट का बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होता है. छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद सालाना वेतन का खर्च 15669 करोड़ रुपए पहुंच चुका है.कर्ज के ब्याज पर चुकाने पड़ रहे 4828 करोड़: हिमाचल सरकार का आर्थिक संकट इस कदर गंभीर है कि कर्ज के सहारे चल रही सरकारी गाड़ी को खींचने के लिए ब्याज पर ही सालाना 4828 करोड़ रुपए चुकाने पड़ते हैं. हिमाचल में सरकार किसी की भी हो, बिना कर्ज के काम नहीं निकलता.

कैग कई बार हिमाचल को कर्ज के बारे में चेतावनी दे चुका है. कांग्रेस सत्ता में होती है तो कर्ज का ठीकरा भाजपा पर फोड़ती है और भाजपा सत्ता में आती है तो कर्ज का जिम्मेदार कांग्रेस को ठहराती है. नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है कि सुखविंदर सरकार ने कर्ज लेने के अलावा और कोई काम नहीं किया है. वहीं, सीएम सुखविंदर सिंह का कहना है कि कांग्रेस सरकार पूर्व की भाजपा सरकार द्वारा लिए गए कर्ज का खामियाजा भुगत रही है. सीएम सुक्खू ने कहा कि उनकी सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं. आने वाले समय में इसका असर दिखेगा. वहीं, भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदल ने भी कांग्रेस सरकार को कर्ज का बोझ बढ़ाने का जिम्मेदार बताया है. हिमाचल सरकार के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि कर्ज अब एक स्थाई सच्चाई है. राजनीति से परे हटकर सभी को राजस्व बढ़ाने के उपायों पर चिंतन करना होगा. अब ओपीएस का बोझ भी आने वाले समय में हिमाचल सरकार को अपना प्रभाव दिखाएगा. ओपीएस का बोझ तो पड़ेगा ही, डीए और एरियर का भुगतान न होने से कर्मचारी वर्ग में असंतोष भी बढ़ेगा. राज्य सरकार को इस ओर ख्याल करना होगा।

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